वर्ष 1949 में 26 नवम्बर को देश का संविधान पारित किया गया था,इसलिए इस दिन संविधान दिवस कहा जाता है। पूरे देश मे यह दिन इतने जोर-शोर से पहले कभी नही मनाया गया होगा,जितना इस साल मनाया गया। शायद लोगो को एहसास होने लगा है कि संविधान आज खतरे में है।
पहली बार देश मे इस तरह की राजनीतिक दिशा के लोग केंद्र सरकार और कई राज्यो में सत्तासीन है जो परंपरा गत तौर पर संविधान के आलोचक है।संविधान का खुल कर विरोध करना तो असंभव है,क्योंकि उसका पालन करने की शपथ सार्वजनिक पद पर आसीन हर व्यक्ति को लेनी पड़ती है।पर देश की तमाम राजनैतिक धाराओं में केवल एक ही है , जिसने शुरू से संविधान को मनाने से इनकार कर दिया था।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक एम.एस.गोलवलकर ने तीन नंबर 1949 को ऑर्गनाइजर में अपने लेख में शोक व्यक्त किया था कि हमारे संविधान में प्राचीन भारत की अनोखी सवैंधानिक प्रक्रियाओं का कोई जिक्र ही नही है।
अपनी पुस्तक बंच ऑफ थॉट्स में गोलवलकर ने लिखा "प्राचीन काल मे भी जातीय थी और हमारे गौरवशाली राष्ट्रीय जीवन का लगातार हिस्सा बनी रही...। हर व्यक्ति को समाज की उचित सेवा करने के लिए उसकी उस कार्य प्रणाली में,जिसके लिए वह सबसे अधिक उपयुक्त है,वर्ण-व्यवस्था मदद करती है। यही वह तथ्य है, जिसे मनु ने,जो दुनिया का पहला सबसे महान न्याय बनाने वाला था,अपने न्याय शास्त्र में दर्ज किया।
आज भाजपा केंद्र और कई राज्यो में सरकार चला रही है। इसने कभी खुद को गोलवलकर के विचारों से अलग नही किया। इनमें से कई है ,जिन्होंने मनुस्मृति की प्रशंशा भी की है और राजस्थान उच्च न्यायालय में उन्ही की सरकार ने मनु की मूर्ति भी स्थापित की थी। मनुस्मृति में महिलाओ से संबंधित कुछ निर्देश इस तरह है:पुत्री ,पत्नी, माता ,कन्या, युवा, वृद्धा- किसी भी स्वरूप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए-- मनुस्मृति ,अध्याय-9 श्लोक-दो से छह। पति पत्नी को छोड़ सकता है ,गिरवी रख सकता है,बेच सकता है,पर स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही है-मनु स्मृति,अध्याय 9,श्लोक 45। स्त्री को संपत्ति रखने का अधिकार नही है,स्त्री की संपत्ति का मालिक उसका पति,पुत्र या पिता है-मनुस्मृति, अध्याय 9,श्लोक 416। असत्य जिस तरह अपवित्र है, उसी भांति स्तरीय भी अपवित्र है,पढ़ने-पढ़ाने,वेद-मंत्र बोलने ,या उपनयन का स्त्रियों को अधिकार नही है- मनुस्मृति अध्याय 2,श्लोक- 66 और अध्याय-9 श्लोक-18। पति सदाचार हीन हो,अन्य स्त्रियों में आसक्त हो, दुर्गुणों से भरा हो,नपुंसक हो, फिर भी स्त्री को उसे देव की तरह पूजन चाहिए, मनुस्मृति-अध्याय-5, श्लोक-154 । मनुस्मृति के अनुसार, एक ही अपराध के लिए अपराधी की जाती और जिसके साथ अपराध हुआ है, उसकी जाती देख कर सज़ा दी जानी चाहिए।
मनुस्मृति की आत्मा और संविधान की आत्मा एक दूसरे के विपरीत है। संविधान के पारित होने के बावजूद हमारी बहुत सी मान्यताएं मनु स्मृति के अनुरूप ही है। इसीलिए कार्य पालिका और न्यायपालिका के माध्यम से यह कोशिश की जाती है कि जब भी अन्यायपूर्ण परंपरा और संविधान के बीच टकराव होता है ,तो संविधान के पक्ष में निर्णय लिया जाय। इसने खतरे का एहसास दिला दिया है और संविधान की रक्षा करने की बात व्यापक पैमाने पर होने लगी है।.....(अमर उजाला से साभार)